शहरों में कारोबारी माहौल बेहतर बनाने और औद्योगिक श्रमिकों के कल्याण के लिए राज्यों को केंद्रीय सहायता के तहत इस साल पांच हजार करोड़ रुपये मिल सकते हैं।
इसमें भी प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में अगर अपेक्षित सुधारों यानी नियम-कानूनों के झंझटों को कम करने के लिए आगे आता है तो राज्यों को अधिकतम 700 करोड़ रुपये तक की मदद मिल सकती है।
शहरों में कारोबारी माहौल बेहतर बनाने के लिए राज्यों को करने होंगे सुधार
प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं-भूमि और भवन व निर्माण। इस योजना का एक महत्वपूर्ण पहलू है 60 वर्ग मीटर से कम क्षेत्रफल वाले किफायती आवासीय प्रोजेक्टों को बढ़ावा देना।
उद्योगों से जुड़े ये आवासीय प्रोजेक्ट मुख्य रूप से औद्योगिक श्रमिकों की आवासीय समस्या का समाधान करेंगे।
राज्य सरकारों को औद्योगिक क्षेत्रों अथवा इस्टेट या पार्क में श्रमिकों के लिए आवासीय परियोजनाओं को मुख्य गतिविधि के रूप में अनुमति देनी होगी और घोषित इंडस्ट्रियल एरिया अथवा इस्टेट में भू उपयोग परिवर्तन संभव नहीं होगा।
नियम-कानूनों का जाल कम किया जाए
कारोबारी माहौल में सुधार के संदर्भ में केंद्र सरकार का उद्देश्य शहरों में आर्थिक विकास और रोजगार के नए अवसर उत्पन्न करने के लिए एमएसएमई के मौजूदा ढांचे को बल प्रदान करने के साथ ही ऐसे नए उद्योग लगाने की राह आसान करना है। हालांकि, यह तभी संभव है जब उद्यमियों के लिए नियम-कानूनों का जाल कम किया जाए।
विशेष आर्थिक क्षेत्र में इस प्रकार के प्रयास इसलिए अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाए, क्योंकि मंजूरियों, निर्माण के नियमों और जमीन के इस्तेमाल को लेकर जटिलताएं अब भी कायम हैं।
क्रियान्वयन संबंधी दिशा-निर्देश जारी
वित्त मंत्रालय ने इस साल राज्यों की सहायता के संदर्भ में की गई बजट घोषणा के अनुरूप राज्यों को तीन श्रेणियों में बांटा है और उसी के अनुरूप फंड तय किया है।
अब आवास और शहरी कार्य मंत्रालय इस योजना के लिए क्रियान्वयन संबंधी दिशा-निर्देश जारी करेगा।
सुधार के कदम उठाने के लिए अगले साल 15 दिसंबर तक का वक्त
राज्यों के पास सुधार के कदम उठाने के लिए 15 दिसंबर 2026 तक का वक्त है और इसके बाद 20 दिसंबर को शहरी कार्य मंत्रालय अपनी सिफारिशें भेजेगा।
भूमि संबंधी सुधारों के तहत राज्यों को मिश्रित भू उपयोग पर आधारित विकास गतिविधियों के लिए उदार रवैया अपनाना होगा।
कारोबारी माहौल में सुधार के लिए प्राथमिकता वाले दूसरे घटक यानी भवन और निर्माण में राज्यों से कहा गया है कि वे पीछे और अगल-बगल खाली स्थान छोड़ने के नियमों को तार्किक बनाएं।
उदाहरण के लिए 500 वर्ग मीटर से कम और अधिक क्षेत्रफल वाले प्लॉट के लिए सेटबैक यानी अनिवार्य खाली स्थान के मानक एक जैसे नहीं हो सकते।
शहरों में कारोबारी माहौल बेहतर
उद्यमियों और कारोबारियों की यह शिकायत रही है कि इसके नियम इतने अतार्किक हैं कि उन्हें औद्योगिक प्लाटों में अच्छी-खासी जमीन इस अनिवार्यता को पूरा करने के लिए गंवानी पड़ती है।
इसी तरह उन्हें पार्किंग के मानकों को भी सुधारना होगा।